Swanand Kirkire
तू किसी रेल सी गुज़रती है
तू किसी रेल सी गुज़रती हैमैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
तू भले रति भर ना सुनती है
मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ
किसी लंबे सफ़र की रातो में
तुझे अलाव सा जलाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथरा ता हूँ
काठ के ताले है
आँख पे डाले है
उनमें इशारों की चाबियाँ लगा
काठ के ताले है
आँख पे डाले है
उनमें इशारों की चाबियाँ लगा
रात जो बाक़ी हैं
शाम से ताकि हैं
नीयत में थोड़ी
नीयत में थोड़ी खराबिया लगा
मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा
तुझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथरा ता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
थरथराता हूँ, थरथाराता हूँ
थरथराता हूँ